गुरुवार, 29 जुलाई 2010

शंभु की बारात

*
लो ,चली ये शंभु की बारात !

आज गौरी वरेंगी जगदीश्वर को
चल दिये है ब्याहने अद्भुत बराती साथ .
चढ़े बसहा चढे शंकर ,लिए डमरू हाथ ,
बाँध गजपट,भाँग की झोली समेटे काँख,
साथ चल दी ,विकट अद्भुत महाकार जमात!
बढ़ चली लो शंभु की बारात.
*
सब विरूपित ,विकृत सब आधे अधूरे ,
चल दिए पाकर कृपा का हाथ ,
अंध, कोढ़ी, विकल-अंग, विवस्त्र, विचलित वेश,
कुछ निरे कंकाल कुछ अपरूप,
विकृत और विचित्र-  देही विविध रूप अशेष
अंग-हत कंकाल ज्यों हों भूत -प्रेत-पिशाच !
नाचते आनंद स्वर भर  गान परम विचित्र,
बन बराती चल दिएसब संग .
*
चले सभी, कि आज हो आतिथ्य पशुपति साथ
आज तो वंदन मिलेगा और चंदन भाल.
मान -पान समेत स्वागत भोग, सुरभित माल,
रूप-रँग-गुण हीन ,वस्त्र-विहीन ,सज्जा-हीन ,
तृप्ति पा लेंगे सभी पा अन्न और अनन्य!
*
वंचितों को शरण में ले हँसे शंभु प्रसन्न.
पूछता कोई न जिनको ,सब जगत भयभीत
त्यक्त हैं अभिशप्त ज्यों, कैसी जगत की रीत!
चिर-उपेक्षित शंभु से जुड़ पा गए सम्मान ,
चल दिए स्वीकार करने शंभु कन्यादान
*
देख पशुपति की विचित्र बरात.
देव-किन्नर यक्ष दनुसुत नाग सब चुपचाप
भ्रमित ,विस्मित किस तरह हों बन बराती साथ .
सोच में हैं यह कि भोले को चढ़ी है भंग,
हरि ,विरंचि , मनुज सभी तो रह गए हैं दंग!
*
जानते शिवशंभु सबका सोच.
कौन है संपूर्ण ,पशु-तन तो सभी के साथ.
कौन है परिपूर्ण सबके ही विकारी अंग?
मौन विधि,नत-शीश हैं देवेन्द्र,
और इनकी व्याधियाँ- बाधा हरेगा कौन ,
चेतना का यह विकृत परिवेश ,
दोष किसका ,यह बताए कौन ?
*
तुम सभी पावन परम ,ले दिव्य ,सुन्दर रूप ,
देह धर आए यहाँ आनन्द के ही काज,
शक्तियों-सह चल, करो सब साज स्वागत हेतु.
रहो हिमगिरि के भवन धर कर घराती रूप ,
मैं कि पशुपति करूँगा स्वीकार ये पशु-रूप .

सृष्टि का विष कंठ, सभी विकार धर कर शीष,
ये उपेक्षित त्यक्त, मेरे स्वजन बन हों संग,
शिव बिना अपना सकेगा कौन ?
स्वयं भिक्षुक बना याचक मंडली ले साथ
आ रहा हूँ माँगने लोकेश्वरी का हाथ!
रहे वंचित,निरादृत अब तृप्त हों वे जीव ,
स्वस्थ सहज प्रसन्न मन की मिले हमें असीस .
*
डमरु की अनुगूँज,जाते झूम ,
विसंगतियों में ढले वे दीन-दरिद अनाथ,
नृत्य करते ,तान भरते विकट धर विन्यास!
हुए कुंठाहीन . आत्म भर आनन्द-लीन विभोर-
आज सिर पर परम शिव का हाथ.
चल पड़ी लो शंभु की बारात !
*

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह..आपकी रचना पढ़ कर शिव की बरात का पूरा दृश्य उपस्थित हो गया

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  2. सब विरूपित ,विकृत सब आधे अधूरे ,
    चल दिए पाकर कृपा का हाथ ,
    अंध कोढी विकल-अंग विवस्त्र विचलित वेश
    कुछ निरे कंकाल कुछ अपरूप
    विकृत और विचित्र देही विविध रूप अशेष
    अंग-हत कंकाल ज्यों हों भूत -प्रेत-पिशाच !

    बहुत jeewand चित्रण....बहुत सुंदर वर्णन..

    चिर-उपेक्षित शंभु से जुड़ पा गए सम्मान
    :):):):):):):):):):):):):):):):):):):)
    bhagwan shiv kee yahi baat mujhe unse sada jodti aayi hai.....hriday khil utha ye pankti padh kar......


    चेतना का यह विकृत परिवेश ,
    दोष किसका ,यह बताए कौन ?

    हम्म ..param pita का dosh..:(

    ये उपेक्षित त्यक्त, मेरे स्वजन बन हों संग,
    शिव बिना अपना सकेगा कौन ?

    इस चीज़ में तो भगवन shankar का koi saani ही नहीं....:):)
    khoob sara sneh umad आया shiv जी के लिए...:D:):) shanakr जी...bestam best हैं..:)

    डमरु की अनुगूँज,जाते झूम ,
    विसंगतियों में ढले वे दीन दरिद अनाथ,
    नृत्य करते ,तान भरते विकट धऱ विन्यास!
    हुए कुंठाहीन , आत्मानन्द-लीन विभोर
    आज सिर पर परम शिव का हाथ
    चल पड़ी लो शंभु की बारात !

    yahan कुछ कुछ मन bheeg गया मगर dukh से नहीं...khushi से.......shayad ye sochkar कि sabke tyaage hue tiraskrit praaniyon को aaj bhagwan shiv अपना maankar sang ले ja रहे हैं..pariwaar ka darjaa de rahein hain...
    खुद पर परन्तु अब हंसी सी आ रही है..कि मैं एक भूत प्रेत की जानिब से इतना भावुक क्यूँ सोच रही हूँ.......:) ज़ाहिर सी बात है...उनके साथ सब कोई नहीं रह सकता.......केवल शिव जी..में ही इतनी सामर्थ्य और करुणा है.....

    इस कविता को पढ़के अजीब सी स्थति हो रही है...:(...न शब्दों पर ध्यान गया न प्रवाह पर न शिल्प पर.........धीरज कुमार कृत ''ॐ नम: शिवाय'' में दिखाई गयी भगवान् शिव की baarat का दृश्य और वही शंकर जी (समर जय सिंह,जिन्होंने भगवान् शिव का पात्र निभाया धारावाहिक mein)......मेरी आँखों के सामने हैं.....:)

    बहुत आभार कविता के लिए प्रतिभा जी.....खासकर उसके प्रस्तुतीकरण के लिए.....बहुत बहुत अच्छा लगा कि कविता का केंद्र शिवजी की बारात का दृश्य ya unke baraatiyon ki bhayavahta nahin नहीं बल्कि उनके ह्रदय के भाव है unki karunaa/sneh/dayaalu swabhaav hai.....साथ ही aapne देवताओं को भी बख्शा नहीं है.....उनको भी अपनी समरूप कवी दृष्टि से बहुत इमानदारी से चित्रित किया है.......वाकई.....संपूर्ण होते हुए भी ve संपूर्ण कहाँ......:/

    एक बात कहने से खुद को रोक नहीं पा रही.....भगवान् शिव के अनुयायी और भक्त (भूत-प्रेत,पिशाच..etc) आपकी कविता पढ़ एकदम ह्रदय से निहाल हुए होंगे....chitrgupt ke paas aate honge baar baar is kavita ke liye...:)

    खैर..शुभ रात्रि !!
    शुक्रिया फिर से कविता के लिए aur is pyaari si anubhooti ke liye...:)

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  3. शकुन्तला बहादुर2 अक्तूबर 2014 को 12:22 pm बजे

    कितनी सूक्ष्मता से शिव की बारात के व्यापक काव्यात्मक सरस ललित
    चित्रण ने मन को मुग्ध किया और नेत्रों को यही कहना पड़ता है " अहो! लब्धं नेत्रनिर्वाणम् ।" आभार एवं साधुवाद !!

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