बुधवार, 4 नवंबर 2009

dance-drama - जयभारत

जय भारत जय हिन्दुस्तान-
(पृष्ठ-भूमि मे भारत का नक़शा -कुर्ता पैजामा और टोपी पहने एक ओर से वाचक का प्रवेश ,दूसरी ओर से वाचिका का )
वाचक-
विविध भिन्नताओं को पाले भारत -माँ का हृदय विशाल ,
श्रद्धा-ज्ञान-प्रेम की धरती कुदरत की बेजोड मिसाल !
भिन्न-भिन्न देशों से आये द्रविड ,आर्य शक औ' मंगोल,
हिलमिल कर सब रहे यहाँ पर ,जिसका साक्षी है भूगोल !

वाचिका -
कितना आगे बढ आये हम अब वह सब केवल इतिहास ,
आज विषमताओं ने छीना जीवन का सारा उल्लास !
तोड गुलामी की जंजीरें ,देख रहे थे सुख के स्वप्न ,
लेकिन सीमित स्वार्थ भावना ने कर दिया सभी कुछ भग्न !

वाचक-
सुनो दर्शकों ,व्यथा हमारी ,देखो आज हमारा हाल ,
स्वतंत्रता ही जहाँ बन गई एक सवाल ,एक जंजाल !
भाषा -संप्रदाय -सूबों को लेकर ये संकीर्ण विचार ,
राष्ट्र हमारा कहाँ जा रहा ,क्या होगा इसका उपचार ?

(एक ओर से अकाली जोड़े का प्रवेश,संगीत के स्वर रौद्र रस से भर उठते हैं ! अकाली जोड़ा नृत्य की मुद्रा में आगे आता है ।)

अकाली जोड़ा -
एक अकाली सवा लाख है लडकर लेंगे खालिस्तान,
फिर से करो देश के हिस्से उन्हें दिया जब पाकिस्तान !
हम सिक्खों की अलग कौम है,नेता अलग ,अलग सब चाल,
बम फोडें गोले बरसायें रूप धरेंगे हम विकराल !
हिन्दू भागो,मुस्लिम भागो ,भागो जैन और क्रिस्तान ,
नहीं किसी को रहने देंगे अलग करेंगे खालिस्तान !
(वे एक ओर जाकर खड़े हो जाते हैं,पृष्ठभूमि से एक बंगाली जोडा आता है,,संगीत के स्वर तदनुरूप परिवरितित हो जाते हैं।)
बंगाली जोड़ा -
है आमार शोनार बाँगला ,कान खोल कर सुन लो माँग ,
और नहीं तो ले डालेंगे सबका चैन और आराम ऍ
भाषा औ' साहित्य,कला सभ ही मे हमने किया कमाल ,
दबी क्रान्ति की यह चिन्गारी बन जायेगी लपट कराल !
हमको दो बंगाल कि जिसमे नहीं शान्ति पर आये आँच,
विधि-विधान औ' तंत्र भिन्न हो ,या फिर होगा ताण्डव नाच !
(आसामी जोड़े का प्रवेश ,संगीत मे तदनुरूप परिवर्तन )
आसामी जोड़ा -
शान्त रहो ,शान्त रहो आसाम हमारा ,हम आसमी भी खुदमुख्त्यार ,
तेल हमारा ,जूट हमारा ,अलग हमारा हो संसार !
भाषा-भूषा भिन्न हमारी ,और पराये हैं सब लोग ,
दिल्ली तक लपटें पहुँचेंगी ,नहीं सकेगा कोई रोक !
यह वर्षा का प्रान्त ,वनो की भूमि ,प्रकृति का सिन्दर वेस ,
मार-काट मच जायेगी ,यदि यहाँ किसी ने किया निवेश !
(कश्मीरी जोडे का प्रवेश )
कश्मीरी जोडा - हम कश्मीर ,स्वर्ग धरती के ,नरक शेष यह हिन्दुस्तान ,
हमको घृणा हिन्दवालों से ,हमको दिल्ली से क्या काम ?
अलग रेडिओ विभि-विभान सब ,नाचेंगे सिर पर चढ नाच ,
ढपली अपनी अलग बजेगी ,अलग उठेगा अपना राग !
ये केशर ,ये गाते झरने ,नीली झीलें हँसते फूल ,
ये चिनार झेलम की धारा ,तुम जाओ इन सबको भूल !
(गुजराती जोड़े का प्रवेश )
गुजराती जोड़ा -
 हम गुजराती ,सागर तट पर सूरत और काठियावाड ,
दूर-दूर तक प्रान्त हमारा ,बाकी भारत कूड-कबाड !
ये समृद्धि की भूमि सदा से पाती आई है सम्मान ,
विश्व-पूज्य बापू जन्मे थे इसका हमको है अभिमान !
ये भाषा ,ये भूषा ये संस्कृति, प्राचीना और महान्
अलग रहेगी अपनी हस्ती ,अलग उठेगी अपनी तान !
(महाराष्ट्री जोडे का प्रवेश )
महाराष्ट्री जोड़ा -
महाराष्ट्र की महत् कल्पना हमको करनी है साकार ,
अपना हक लेकर छोडेंगे ,मचे भले ही हा हा कार !
अपनी भाषा रहे मराठी ,अमच्या-तुमच्या मीठे बोल
,हम हो जायें अलग भले सब बिक जाये मिट्टी के मोल !
(मद्रासी जोड़े का प्रवेश )
मद्रासी जोड़ा -
 हम हैं तमिल ,तेलुगूभाषी हमसे करना तीन न पाँच ,
हम जो ताव खा गये तो उत्तर तर पहुँच जायगी आँच !
दक्षिण ने विद्रोह किया तो नहीं बचेगा कोई द्वार ,
कान खोल कर सुनो ,इन्दिरा अलग हमारी हो सरकार !
हिन्दीवालों भागो ,तुमसे नफरत करते हैं हमलोग ,
अंग्रेजी को सिर-माथे धर,पा लेंगे पूरा सन्तोष !
मुसल्मानी जोड़ा -
नजर उठाकर देखो ,तुमने ढाये हम पर कितने जुल्म ,
अपने हों कानून अलहदा ,मजहब अलग ,अलग हो इल्म ,
उर्दू को पूरा दर्जा दो ,सुविधाओं को और बढाओ ,
सब सूबों की नौकरियों मे हमे अलग से कोटा लाओ !
अगर किसी ने बहस बढाई ,होंगे दंगे और फसाद ,
परे हटो ,सिमटो तुम सब ,हम होंगे सारे मे आबाद !

(सभी प्रान्तों के जोड़े अर्दचन्द्राकार ,पृष्ठभूमि मे खडे हैं वाचक-वाचिका पुनः आगे आते हैं )
वाचक-मजहब की दीवार खडी कर नफरत फैलाते हैं लोग ,

अपनी जुबाँ थोप औरों पर झगडे करवाते हैं लोग !
इन्हें अलग कानून चाहिये ,उन्हे चाहिये सबमे छूट ,
आगजनी और तोड-फोड कर नफरत फैलाते हैं लोग !
वाचिका -
पनप रहे हैं ऐसे द्रोही और प्रबुद्धजन हैं चुपचाप ,
अन्यायों का साक्षी बन कर चुप रह जाना भी है पाप !
वाचक -सुन लीं ये सारी आवाजें ,इनको सन्मति दो हे राम ,
जब तक एक न होंगे हम आराम रहेगा ,हमे हराम !
(प्रश्नवाचक मुद्रा मे )
अच्छा भारत से हिस्सा कर दे दें इनको खालिस्तान ?
सब-नहीं,नहीं ,!नहीं, नहीं ,पंजाब हमारा ,भारत का गौरव औ' शान
इसको छोड न रह पायेगा अफनी माता का सम्मान !
अच्छा बोलो भारतवालों ,भारत पृथक करे आसाम ?
आवाजें-नहीं,नहीं वह हृदय हमारा ,हर धडकन मे अपने साथ ,
ऐसी बात सोचना भी है माँ के प्रति भीषण अपराध !
तो ,कश्मीर अलग हो जाये ,तोडे भारत से संबंध ?
सब -नहीं,नहीं वह स्वर्ग हमारा ,जिसको पाकर हम सब धन्य !
उसकी इञ्च-इञ्च धरती पर बलि कर देंगे सौ-सौ जन्म !
प्रश्न-तो फिर दक्षिण के प्रान्तों को बाकी धरती से दें काट ?
सब-नहीं,नहीं ,भारत के आधारमद्र केरल औ' आँन्ध्र ,न दो यह शाप !
अब न चलेगी इस धरती पर द्रोह भरी ये बंदर-बाँट!
वाचक -
चिन्गारी कश्मीर न सुलगा ,जल मत ओ प्यारे आसाम ,
हम सब इस माटी की रचना भारतमाता की सन्तान !
बोली अलग-अलग है तो क्या ,साध्य एक ही अपना देश ,
प्राण रहेंगे भारत के ही भले अलग हो अपना वेश !
वाचिका -
भारत की चिन्ताधारा ने दियासमन्वय का सन्देस,
यही भिन्नता करे पूर्णतर मानव संस्कृति का परिवेश !
मतान्तरों का मुक्त गगन हो ,नहीं उठे मन मे दीवार ,
पृथक् धर्म ,अनगिन भाषायें करें मनुजता का शृंगार

वाचक -
 एक रहे गुजरात, बंग,कश्मीर ,मद्र ,केरल ,आसाम ,
आओ हम सब मिल कर बोलें -'जय भारत,जय हिन्दुस्तान !'
*

1 टिप्पणी:

  1. वाह! बहुत गौरवशाली रचना...बहुत सरल शब्दों के साथ सधा हुआ प्रस्तुतीकरण.....नृत्य नाटिका के साथ साथ एक अच्छा ख़ासा नुक्कड़ नाटक भी बन सकता है....

    'अन्यायों का साक्षी बन कर चुप रह जाना भी है पाप !'

    ..हम्म सच है.....दिल से एकदम मानती हूँ और व्यवहार में भी अपनाती हूँ..मगर अब उम्र के इस पड़ाव पर आकर लगता है.....जोश के साथ होश का सामंजस्य होना बेहद अहम् है.....अन्याय के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद हों..मगर संपूर्ण रणनीति के साथ..

    'मतान्तरों का मुक्त गगन हो ,नहीं उठे मन मे दीवार ,'
    मेरी पसंदीदा पंक्ति.......जो आपको ऐसी और रचनाओं से अलग करती है.....'असहमति पर भी सहमत होना '...अपना अपना राग अलापने से केवल खोखला शोर ही हाथ आएगा...
    कविता का वो हिस्सा बहुत बहुत अच्छा लगा..जहाँ वाचक और वाचिका आगे आकर हर राज्य और कौम को उसका हिस्सा देने ले लिए पूछ रहे हैं.........बहुत तालियाँ इस दृश्य पर.....:)

    और बधाई...अच्छी कविता के लिए..
    अतिरिक्त आभार....ऐसे ज्वलंत (और कहना चाहिए सदाबहार भी...) विषय पर सिर्फ लिखने के लिए hi नहीं varan सरल sehaj लिखने के लिए.......दूर तक जायेगी ना...और samajh भी aayegi...:)

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