tag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.comments2023-09-30T06:13:07.529-07:00मनः रागप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-17577897443428020482014-10-02T12:22:36.823-07:002014-10-02T12:22:36.823-07:00कितनी सूक्ष्मता से शिव की बारात के व्यापक काव्यात्...कितनी सूक्ष्मता से शिव की बारात के व्यापक काव्यात्मक सरस ललित <br />चित्रण ने मन को मुग्ध किया और नेत्रों को यही कहना पड़ता है " अहो! लब्धं नेत्रनिर्वाणम् ।" आभार एवं साधुवाद !!शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-82940605865802000682014-10-02T12:08:12.172-07:002014-10-02T12:08:12.172-07:00जाने कैसे मैंने इस सांस्कृतिक नाटिका को आज तक नहीं...जाने कैसे मैंने इस सांस्कृतिक नाटिका को आज तक नहीं पढ़ पाया था ।ये<br />तो अद्भुत है । तरु जी ने विस्तृत टिप्पणी मेंं जो कुछ लिखा है, प्रभावी है । मेरी ओर से भी उसे ही टिप्पणी रूप में स्वीकार करें । आभार !शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-46730495343101452852013-04-12T09:35:29.823-07:002013-04-12T09:35:29.823-07:00बेहद सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आपके ले...बेहद सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आपके लेखन का आशीर्वाद हमपर ऐसे ही बरसता रहेगा | आभार <br /><br />कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें | <br /><a href="http://www.tamasha-e-zindagi.blogspot.in" rel="nofollow">Tamasha-E-Zindagi</a><br /><a href="http://www.facebook.com/tamashaezindagi" rel="nofollow">Tamashaezindagi FB Page</a><br />Tamasha-E-Zindagihttps://www.blogger.com/profile/01844600687875877913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-86022765016366927972012-09-18T01:52:26.031-07:002012-09-18T01:52:26.031-07:00aise hi padhne baithi thi...to fir ruka nahi gaya ...aise hi padhne baithi thi...to fir ruka nahi gaya ya u kahiye ki itni samvedansheel, marmik aur pravaahmay thi ki ruka hi nahi gaya. jaha ant me aapne likha thodi dair ko maun.....vahan bhi nahi ruka gaya.....aah...man ki ankhe to bheeg hi gayi sath me insan hone par jaise glani si ho gayi...ki kya ham itne samvedan-heen hain...ye to mook panchhi hain jinka itna dard hai aur jb chalte firte insan/bacche maut k muh me, aatank ki aag me jhonk diye jate hain tab bhi is manav ka dil nahi paseejta.<br /><br />sach me man sisak sisak kar rota hai.<br /><br />jabardast lekhan.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-15631836733994028782012-09-15T02:41:38.636-07:002012-09-15T02:41:38.636-07:00pratibha ji aap aur aapki lekhni kitni pratibhasha...pratibha ji aap aur aapki lekhni kitni pratibhashali hain main to yahi soch soch kar achambhit aur prabhavit hui jati hun.<br /><br />aaj tak jin tathyon ko maine kahani ya ghatna ke roop me suna tha aur chintpoorni/nainadevi/jwalaji ityadi mandiron me jakar jana....aaj aapke kaavy dwara poorn roop se aur pramanik roop se jana/samjha hai. <br /><br />ab tak shiv virah ko itni gehanta se n jana tha jitna aapki is rachna se jana hai.<br /><br />kitni aabhari hun ye sab jaan/padh kar shabdo me baandh nahi sakti.<br /><br />aage bhi aap mujhe is prakar ki rachnao ke link batati rahengi aisi umeed karti hun.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-74772287221558064122012-09-15T00:33:29.020-07:002012-09-15T00:33:29.020-07:00bahut bahut bahut utkrisht rachna hai, sunder sash...bahut bahut bahut utkrisht rachna hai, sunder sashakt shabdon ka sanyojan. meghdoot ki yaad dila di. Meghdoot me rati vilap bahut sankshipt roop me padha tha aaj mano uski maneh-sthiti se akshartah ru-b-ru ho gayi hun. bahut aabhari hun apki aur apki lekhni ki. <br /><br />ab lag raha hai khangaalna avashyambhaavi hai.:-)अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-80076693018933323872011-03-27T13:11:39.054-07:002011-03-27T13:11:39.054-07:00बहुत बहुत खूबसूरत रचना है प्रतिभा जी..आनंद आ गया प...बहुत बहुत खूबसूरत रचना है प्रतिभा जी..आनंद आ गया पढ़कर..''काल'' को कितना सुंदर लिखा है आपने........और सच कहूं तो अंत में थोड़ी सी लड़खड़ा भी गयी बुद्धि....मगर जितना समझ आया...वो बहुत अद्भुत ही था...कविता में कई जगह अजीब से भाव पाए उन्हें शब्दबद्ध नहीं कर पा रही हूँ......:(<br /><br />सत्य है काल से कोई नहीं जीत सका......<br /><br />''धर दे निजत्व उसके आगे विरहित प्रमाद !<br />प्रस्तुत कर दे रे महाकाल का महा- भोग <br />तू भी है उसकी भेंट स्वयं बन जा प्रसाद !''<br /><br />ये तीन पंक्तियाँ विशेष रूप से मन को भायीं...कारण- कि भारतीय सेना पर एक विशेष श्रंखला देख रही हूँ discovery पर... ये पंक्तियाँ देख बिजली की तरह वे भारतीय सेना के जांबाज़ सैनिक आँखों के आगे घूम गए......फिर आगे की सारी कविता इन सबके इर्द गिर्द ही घूमती रही...स्वाद ही बदल गया था शब्दों का....फिर से पढ़ने आउंगी ...:(<br /><br />खैर आभार प्रतिभा जी इस ओजस्वी लेखन के लिए....:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-36943177174294814862011-03-05T11:55:46.151-08:002011-03-05T11:55:46.151-08:00कैसा अनोखा, मधुरिम पत्र है यह!
आदि से अंत तक, मन स...कैसा अनोखा, मधुरिम पत्र है यह!<br />आदि से अंत तक, मन स्पंदित होता रहा. यह वार्ता, यह संवाद, यह विचार!! मुग्ध हूँ.<br /><br />अपनी अस्मिता ,न्याय को ले, अंतिम क्षण तक लड़ना वरेण्य,<br />सारथी और गुरु नारायण,संग्राम पार्थ का ही करेण्य !<br /><br />यह पढ़ परम ऊर्जा से पुलकित हो उठा है रोम-रोम.<br />तरु दी की तरह ही मैं भी प्रतीक्षारत रहूँगा,<br />आभार!Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-20116877495332029992011-02-28T11:00:41.185-08:002011-02-28T11:00:41.185-08:00पहले ही चरण में इतना ज़्यादा सुदर वर्णन कर दिया आप...पहले ही चरण में इतना ज़्यादा सुदर वर्णन कर दिया आपने प्रकृति का...कि जाने कितने कितने मनोहारी दृश्य आखों के आगे घूम गए..... <br /><br />''एक पल दारुण दहन का<br />हरित तृण-वीरुध अँगारे लपट लिपटे,<br />गंध वासन्ती कसैला धूम.<br />माँस- मज्जा जलन की तीखी चिराँयध .<br />काम की त्रैलोक्य मोहन देह <br />रह गई बस एक मुट्ठी भस्म .''<br /><br />...वाह! जैसे सचमुच शब्दों संग बिजली सी कौंधी हो और कामदेव भक्क से भस्म हो गयें हों...<br /><br />तुष्ट हो शिव ,शव बना दो सृष्टि को,<br />हो कर अकेले चिर जियो .<br /><br />उलाहना का अंदाजा लगाया था...मगर इतनी मजबूत उलाहना का नहीं...एक दफे फिर शिव और शव को साथ रख कर पंक्ति की सुन्दरता बढ़ा दी आपने......आपकी ही वो वाली कविता याद आ गयी.....''वहां कोई शिव नहीं था सब शव थे...'' शायद 'दुर्गम्य ' थी...एकदम नाम याद नहीं...:(<br />:o कभी सोचा नहीं 'शव' शब्द इतने अच्छे से प्रयुक्त किया जा सकता है......?<br /><br />सुन्दरी ,चिर-यौवना ,सुकुमार <br />धूरि-धूसर ,मूर्छिता रति पड़ी भू-लुंठित ,<br />बिरछ से छिन्न लतिका सी हता .<br />सुधि न वस्त्रों की विभूषण खुले जाते.<br />चेतती किंचित कि दारुण रुदन <br />करुण प्रलाप भर-भऱ !<br /><br />बहुत जीवंत शब्द..अक्षर अक्षर आतुर है जैसे दृश्य के रेखांकन में...मुझे प्रथम पद बेहद पसंद आया था..मगर करुण रस मेरा पसंदीदा है...सो ये दृश्य बेहतरीन लगा....जैसे रति साक्षात मेरे आगे हों...<br /><br />-----------<br />कठिन तो थी रचना ३ बार पढ़के समझ आई...:(..क्यूंकि शब्दों के अर्थ नहीं पता थे प्रतिभा जी.....खैर शुक्रिया हो गूगल महाराज का...<br />ये कथा तो सुनी ही हुई थी...उससे ज़्यादा देखी हुई थी टीवी पर...परन्तु आपकी नज़रों से आपके शब्द चित्र के माध्यम से पुन: कथा दोहराना बहुत अच्छा अनुभव रहा.... .<br /><br />बहुत उम्दा सृजन...शायद ''शिव विरह'' से भी बहुत अच्छी लगी मुझे ये कविता......<br /><br />(प्रतिभा जी...भाषा की त्रुटी(यदि होती हो ..) और अपरिपक्व टिप्पणियों के लिए सदा क्षमाप्रार्थी रहूंगी.....मगर बिना कहे रहा भी तो नहीं जाता..:(...)<br /><br />चलिए शुभ रात्रि !!Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-89718239171449822302011-02-16T11:38:49.586-08:002011-02-16T11:38:49.586-08:00सब विरूपित ,विकृत सब आधे अधूरे ,
चल दिए पाकर कृपा ...सब विरूपित ,विकृत सब आधे अधूरे ,<br />चल दिए पाकर कृपा का हाथ ,<br />अंध कोढी विकल-अंग विवस्त्र विचलित वेश<br />कुछ निरे कंकाल कुछ अपरूप <br />विकृत और विचित्र देही विविध रूप अशेष <br />अंग-हत कंकाल ज्यों हों भूत -प्रेत-पिशाच !<br /><br />बहुत jeewand चित्रण....बहुत सुंदर वर्णन..<br /><br />चिर-उपेक्षित शंभु से जुड़ पा गए सम्मान<br />:):):):):):):):):):):):):):):):):):):)<br />bhagwan shiv kee yahi baat mujhe unse sada jodti aayi hai.....hriday khil utha ye pankti padh kar......<br /><br /><br />चेतना का यह विकृत परिवेश ,<br />दोष किसका ,यह बताए कौन ?<br /><br />हम्म ..param pita का dosh..:(<br /><br />ये उपेक्षित त्यक्त, मेरे स्वजन बन हों संग,<br />शिव बिना अपना सकेगा कौन ?<br /><br />इस चीज़ में तो भगवन shankar का koi saani ही नहीं....:):)<br />khoob sara sneh umad आया shiv जी के लिए...:D:):) shanakr जी...bestam best हैं..:) <br /><br />डमरु की अनुगूँज,जाते झूम ,<br />विसंगतियों में ढले वे दीन दरिद अनाथ,<br />नृत्य करते ,तान भरते विकट धऱ विन्यास!<br />हुए कुंठाहीन , आत्मानन्द-लीन विभोर <br />आज सिर पर परम शिव का हाथ <br />चल पड़ी लो शंभु की बारात !<br /><br />yahan कुछ कुछ मन bheeg गया मगर dukh से नहीं...khushi से.......shayad ye sochkar कि sabke tyaage hue tiraskrit praaniyon को aaj bhagwan shiv अपना maankar sang ले ja रहे हैं..pariwaar ka darjaa de rahein hain...<br />खुद पर परन्तु अब हंसी सी आ रही है..कि मैं एक भूत प्रेत की जानिब से इतना भावुक क्यूँ सोच रही हूँ.......:) ज़ाहिर सी बात है...उनके साथ सब कोई नहीं रह सकता.......केवल शिव जी..में ही इतनी सामर्थ्य और करुणा है.....<br /><br />इस कविता को पढ़के अजीब सी स्थति हो रही है...:(...न शब्दों पर ध्यान गया न प्रवाह पर न शिल्प पर.........धीरज कुमार कृत ''ॐ नम: शिवाय'' में दिखाई गयी भगवान् शिव की baarat का दृश्य और वही शंकर जी (समर जय सिंह,जिन्होंने भगवान् शिव का पात्र निभाया धारावाहिक mein)......मेरी आँखों के सामने हैं.....:)<br /><br />बहुत आभार कविता के लिए प्रतिभा जी.....खासकर उसके प्रस्तुतीकरण के लिए.....बहुत बहुत अच्छा लगा कि कविता का केंद्र शिवजी की बारात का दृश्य ya unke baraatiyon ki bhayavahta nahin नहीं बल्कि उनके ह्रदय के भाव है unki karunaa/sneh/dayaalu swabhaav hai.....साथ ही aapne देवताओं को भी बख्शा नहीं है.....उनको भी अपनी समरूप कवी दृष्टि से बहुत इमानदारी से चित्रित किया है.......वाकई.....संपूर्ण होते हुए भी ve संपूर्ण कहाँ......:/<br /><br />एक बात कहने से खुद को रोक नहीं पा रही.....भगवान् शिव के अनुयायी और भक्त (भूत-प्रेत,पिशाच..etc) आपकी कविता पढ़ एकदम ह्रदय से निहाल हुए होंगे....chitrgupt ke paas aate honge baar baar is kavita ke liye...:)<br /><br />खैर..शुभ रात्रि !!<br />शुक्रिया फिर से कविता के लिए aur is pyaari si anubhooti ke liye...:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-35530525165079291202011-02-16T11:03:25.956-08:002011-02-16T11:03:25.956-08:00जी...प्रतिभा जी..:D....मैंने कथा पढ़ ली....
हुआ द...जी...प्रतिभा जी..:D....मैंने कथा पढ़ ली....<br /><br />हुआ दरअसल ऐसा...कि कुछ खोज रही थी गूगल पर.....यकायक.....बिजली की तरह कौंधता हुआ एक संशय मिश्रित प्रश्न रुपी व्यंग्य दिमाग में आया......कि कह तो दिया प्रतिभा जी को...कि पुजारी जी से पूछोगी...मगर माता नर्मदा तो जानती ही होंगी...कि ऐसे ऐसे हुआ होगा...और तरु बजाये तुरंत ढूँढने के use taal kar...गूगल में दुनिया भर की चीज़ें खोज रही है..और खोजती रहती है.....और बस उनकी अपनी कथा पुजारी जी से पूछेगी वो भी जब कभी जाना होगा तब...........:(<br /><br />एहसास हुआ जैसे ही गलती का...फटाफट...ढूंढी कथा...एक ब्लॉग पर मिल भी गयी..(भला हो उन ब्लॉग वाले श्रीमान जी का)......और जोहिला के बारे में bhi जान लिया......<br /><br /> <br /> bahut इंतज़ार रहेगा..जब भी आप जोहिला और माँ रेवा के बारेमें रचना लिखेंगी......बताईयेगा कृपा करके..:(.....vastav mein उत्कंठा रहेगी jaanne kee कि आप माँ नर्मदा के मनोभावों को किस रूप में चित्रित करेंगी...<br /><br />बहुत आभार प्रतिभा जी.....:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-8267155854066643892011-02-16T10:47:17.003-08:002011-02-16T10:47:17.003-08:00वाह! बहुत गौरवशाली रचना...बहुत सरल शब्दों के साथ स...वाह! बहुत गौरवशाली रचना...बहुत सरल शब्दों के साथ सधा हुआ प्रस्तुतीकरण.....नृत्य नाटिका के साथ साथ एक अच्छा ख़ासा नुक्कड़ नाटक भी बन सकता है....<br /><br />'अन्यायों का साक्षी बन कर चुप रह जाना भी है पाप !'<br /><br />..हम्म सच है.....दिल से एकदम मानती हूँ और व्यवहार में भी अपनाती हूँ..मगर अब उम्र के इस पड़ाव पर आकर लगता है.....जोश के साथ होश का सामंजस्य होना बेहद अहम् है.....अन्याय के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद हों..मगर संपूर्ण रणनीति के साथ..<br /><br />'मतान्तरों का मुक्त गगन हो ,नहीं उठे मन मे दीवार ,'<br />मेरी पसंदीदा पंक्ति.......जो आपको ऐसी और रचनाओं से अलग करती है.....'असहमति पर भी सहमत होना '...अपना अपना राग अलापने से केवल खोखला शोर ही हाथ आएगा...<br />कविता का वो हिस्सा बहुत बहुत अच्छा लगा..जहाँ वाचक और वाचिका आगे आकर हर राज्य और कौम को उसका हिस्सा देने ले लिए पूछ रहे हैं.........बहुत तालियाँ इस दृश्य पर.....:)<br /><br />और बधाई...अच्छी कविता के लिए.. <br />अतिरिक्त आभार....ऐसे ज्वलंत (और कहना चाहिए सदाबहार भी...) विषय पर सिर्फ लिखने के लिए hi नहीं varan सरल sehaj लिखने के लिए.......दूर तक जायेगी ना...और samajh भी aayegi...:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-16503219356067056152011-02-15T23:23:20.510-08:002011-02-15T23:23:20.510-08:00kya Pratibha Jee,
fir se aapne 'aap' kehk...kya Pratibha Jee,<br /><br />fir se aapne 'aap' kehke mukhaatib kiya...<br /><br />:(<br /><br />maine 'tum' ki aadat daal li thi...itti si to apeksha hi hai bas....:(Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-55011254184875630952011-02-15T23:11:14.975-08:002011-02-15T23:11:14.975-08:00Jee Shukriya..
hmm...aisi to koi prem katha nahin...Jee Shukriya..<br /><br />hmm...aisi to koi prem katha nahin padhi...Tatvaasini hi hoon bas...itna jaanti nahin vistaar se......:(<br /><br />abki Maa Narmada ke darshan ke liye jaaungi..to wahan pujari ji se poochhungi...:)<br /><br />shukriya aapne waqt diya apna keemti wala...:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-63819922853811316312011-02-15T18:45:44.124-08:002011-02-15T18:45:44.124-08:00हाँ तरु जी ,एक बात कहना तो भूल ही गई -आप नर्मदा तट...हाँ तरु जी ,एक बात कहना तो भूल ही गई -आप नर्मदा तटवासिनी हैं आपने नर्मदा और शोण की (असफल) प्रेम-कथा नहीं पढ़ी ?एक नदी है जोहिला ,नर्मदा की सखी,उसने सखी-धर्म नहीं निभाया था.कभी मौका लगा तो इस पर कुछ लिखूँगी .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-22270521219036687692011-02-15T18:36:14.122-08:002011-02-15T18:36:14.122-08:00तरु,शोण भारत की एक नदी है -जिसे सोन कहते हैं .प्रस...तरु,शोण भारत की एक नदी है -जिसे सोन कहते हैं .प्रसाद की ममता कहानी में (ऐसा कुछ याद आ रहा है)शोण नद का उल्लेख आया है .एक बात और हमारे यहाँ और सब नदियाँ हैं ,केवल दो ब्रह्मपुत्र और शोण को ही पुल्लिंग माना गया है .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-54188610347468256632011-02-15T11:20:07.754-08:002011-02-15T11:20:07.754-08:00एक बात कहूं......प्रतिभा जी.......अच्छा है आपने इस...एक बात कहूं......प्रतिभा जी.......अच्छा है आपने इस विषय पर कविता रची....कोई आलेख लिखतीं aapतो शर्तिया बहुत मार्मिक होता..........:)<br />कविता में भाव थोड़े से तो बंध ही जातें हैं....खैर...:)<br /><br />'वर्तमान में आकर भी मन सिसक-सिसक रोता है .'<br />बहुत prabhavi पंक्ति थी.....<br /><br />संवेदनाओं की सीमा नहीं होती.....इंसान का मन सबके लिए एक सा दुखता है....फिर वो ९/११ हो या फिर २६/११ या फिर हिरोशिमा-नागासाकी........:(<br />कबूतर जोड़े खासकर पंछी माँ के लिए विशेष रूप से पीड़ा महसूस की..मूक प्राणी हैं..कह सुन भी सकते...कोई तीसरा उन्हें बता भी नहीं सकता.......:(<br /><br />मुआफ कीजियेगा ...आज शायद बहुत pratical मूड है...कविताओं की संवेदनाएं मन पर असर नहीं कर पा रहीं..:(......ये कविता भी फिर पढूंगी अच्छे संजीदा से मूड में...आज उतना जोड़ नहीं पायी स्वयं को.......:(<br /><br />बहरहाल,<br />बधाई इस रचना के लिए और प्रथम पुरस्कार के लिए भी......:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-39560138690370374092011-02-15T10:58:30.724-08:002011-02-15T10:58:30.724-08:00'लहरों की तरल वर्णमाला'
वाह! :) सही है नद...'लहरों की तरल वर्णमाला'<br /><br />वाह! :) सही है नदियाँ लहरों की लिपि में ही तो लिखेंगी....<br /><br />'गिरनार-अरावलि उठे विंध्य की ओर बढ़े ,<br />पूरवी -पश्चिमी घाट खिसक आये आगे ,<br />उत्सुकता से नागा पर्वत के कान खड़े !'<br />बेहद खूबसूरत मंज़र.....इतना अच्छा लगा पढ़ना ये तीन पंक्तियाँ.....कितना प्यारा लिखा है प्रतिभा जी.....जीवन भर दिया इन ३ पंक्तियों में.......जैसे घर में (पुराने समय में) नानी के घर से चिठ्ठी आती थी..तो मैं और भैया अलर्ट होकर आगे खिसक खिसक कर माँ के पास चले आते थे..:):)<br /><br />एक बात और कहूँगी...:(:(.....अंत उतना प्रभावशाली जाने क्यूँ नहीं प्रतीत हुआ...ऐसा लगा कुछ रह गया बाक़ी कहने को...ho sakta hai...maine hi sahi nahin samjha ho...hmm fir prayatn karungi..:(<br /><br />खैर,बहुत मोहक चित्र खींचा है और कितनी ज़रूरी समस्या उठाई है नदियों के माध्यम से....बधाई इसके लिए...<br /><br />(जी एक तुच्छ सा निवेदन है...'शोण' का अर्थ...गूगल से देखा...(लाल रंग)..और अविनाश ने भी एक जगह इसका प्रयोग ''लाल'' के तौर पर किया...<br />मगर आपकी इस कविता में इसका क्या अर्थ है?? शायद कोई नदी या झील....:(..???<br />समय हो जब कभी भी थोड़ा सा तो अगर बता सकें...:(...वरना प्रतिभा जी वो पंक्ति मेरे दिमाग से निकलेगी नहीं...:(...... )<br />अग्रिम धन्यवाद........:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-71960234645374336542011-02-15T10:38:29.554-08:002011-02-15T10:38:29.554-08:00''.तब किसी ने भगवान् राम को रोका था या नही...''.तब किसी ने भगवान् राम को रोका था या नहीं...किसी ने तो विरोध किया ही होगा.''<br /><br />यहाँ विरोध से मेरा तात्पर्य शक्तिशाली तार्किक स्वर से था..न कि रोना गिडगिडाना और एक आदर्श पति का वास्ता देने से.......सुबह ये लिखकर पोस्ट किया मगर कुछ तकनीकी खराबी हो गयी होगी शायद.............Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-63297442969530109672011-02-15T00:47:43.983-08:002011-02-15T00:47:43.983-08:00पुत्र मेरे प्रतापी बनेगे तभी ,जब कि उन पर न छाया य...पुत्र मेरे प्रतापी बनेगे तभी ,जब कि उन पर न छाया यहाँ की पड़े ,<br />घोर मर्याद कुण्ठ्त न कर दे कहीं ,मुक्त व्यवहार मे पुत्र मेरे बढ़ें !<br /><br />कुछ नया पढने को मिला...वरना वही आंसू वही व्यथा कथा.......wahi ''स्वामी स्वामी..'' का कोरा गान.....:/:/<br /><br />'नारी को देगा लाञ्छन और वञ्चना ही यह देश अभागा कथा तुम्हारी गा-गा कर ,<br /><br />:/ हम्म....सत्य वचन !!<br /><br />'ये गहन वन उगे सिर्फ़ मेरे लिए , आप अपने से पहचान अब हो गई ,'<br /><br />यहाँ इस पंक्ति तक पहुँचते पहुँचते आँखें नम हो आयीं......ये नहीं कहूँगी कि शब्दों ने ह्रदय को भिगोया...वरन ... आपके दूसरे ब्लॉग ''लालित्यम'' से माता सीता का वास्तविक परिचय प्राप्त हो चुका था...सो यहाँ उनका दुःख ज़्यादा अच्छे से पहचाना......कुछ कुछ ख़ुशी भी होने लगी है...सीता माता उतनी भी निरीह नहीं जितना मैं समझती आई हूँ.....:)<br />अच्छी बात थी ना प्रतिभा जी..माँ सीता लौटकर वापस नहीं गयीं.....आत्मसम्मान को थामे थामे जीवन व्यतीत किया....एकाकी जीवन जीते हुए बच्चों को भी बड़ा किया.....कहीं भी पिता नाम के जीव का लेशमात्र योगदान नहीं.......:D <br /><br />'अपना व्यक्तित्व माँज कर चमकाना होगा ,फिर से जीवन के कटु यथार्थ मे घिस-घिस कर ,<br />एक और जन्म लेना होगा ओ,राम ,तुम्हे जन-जन को पूर्णावतार दिखाने इस भू पर !'<br /><br />मगर लोग बहुत तेज़ हैं प्रतिभा जी......:)..वे कहेंगे नहीं...रामायण अलग युग में हुई...सो अब चाहे राम भगवान् १० जन्म लें अथवा १००....हमारे लिए वही अनुसरण योग्य है...'पत्नी की अग्निपरीक्षा...''........हम्म ये हो सकता है..कि जन्म लें तो इतना प्रभावशाली vyaktitv हो...कि राम भगवान् को लोग बिसरा देंवें...<br />वैसे सारा झंझट ही नर और नारी में मानव के विभाजन का है....श्रीकृष्ण का फंडा सही है....कि वही एक पुरुष हैं और अन्य सारे जीव-जंतु,वनस्पति,मनुष्य...सभी..प्रकृति स्वरूपा नारी हैं......ये बात सर्वमान्य हो जाए तो व्यर्थ की श्रेष्टता सिद्ध करने में या ''बराबरी के अधिकार और व्यवहार'' का प्रश्न ही समाप्त हो जायेगा......<br /><br />'मुख - सा छिपाए ,एक दूसरे से बचते से , तीनो भइयों के शीश झुके- झुके जा रहे'<br /><br />...लगता है रामायण फिर से पढ़नी पड़ेगी....कुछ yaad नहीं aata....jab माता सीता को वनवास दिया गया....तब किसी ने भगवान् राम को रोका था या नहीं...किसी ने तो विरोध किया ही होगा...:(<br /><br />'जीजी ने तो साथ पूरा निभाया ,वन-वन विपतियाँ सहीं रे ,<br />राजा हुए और सच को न परखा ,कानो धरी बतकही रे !'<br /><br />..:/ जाने कौन मर्यादा बचायी थी यहाँ भगवान् राम जी ने......फिजूल का एक दृष्टांत बना दिया....तभी आजकल log '3rd person' या 'ज़माने' या तथाकथित 'समाज' की सबसे ज़्यादा परवाह करते हैं.....<br /><br />'अब सिर्फ़ ग्लानि है क्यों कि हार बैठे तुम ही ,वह सत्य-नीति की कथा तुम्हारी नहीं रही ,<br />अविचल वैदेही जीतेगी हर बार यहाँ ,सुन लो कि राम अब विजय तुम्हारी नहीं रही !'<br /><br />बहुत ठोस पंक्तियाँ हैं....मगर शायद साहित्य में ही स्वीकारीं जाएँगी.....आम जनजीवन में वैसे ही पुरुष प्रधान समाज है भारत का.....जाने कितनी सीताएं अपने कर्त्तव्य और धर्म को निष्ठा से निभाती हैं....मगर यदा कदा अग्निपरीक्षाओं से भी गुज़रती रहतीं हैं....:/:/<br /><br />कितने ही पुरुष यहाँ आकर आपकी कविता के लिए वाह वाह लिख जायेंगे....मगर अपने घर की सीता से इसी तरह ही पेश आयेंगे.....x-( x-( x-( ......कहीं पढ़ा था एक दफा...माँ दुर्गा के कितने भक्त जो आरती में गा गाकर अभिभूत होते हैं ''..शुंभ निशुंभ विडारे महिषासुर घाती...''...मगर आम ज़िंदगी में असुर की ही तरह पेश आते हैं घर की स्त्री के साथ....और अपेक्षा ...अपेक्षा क्या धर्म समझते हैं....कि पत्नी चुपचाप सहती रहे..और पति धर्म भी निभाती रहे...फिर चाहे मैं उसे वनवास दूं...या ऐसा कुछ भी करूं जो ''अन्याय'' हो....:/:/<br /><br />badhayi sarthak lekhan k liye...naya sambal nayi oorja detin hain aisi rachnayein...........:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-56917436128099428672011-02-13T11:24:04.538-08:002011-02-13T11:24:04.538-08:00हम्म....क्या कहूं...बार बार एक शब्द में क़ैद करने ...हम्म....क्या कहूं...बार बार एक शब्द में क़ैद करने की कोशिश कर रही हूँ मन:स्थिति...और बार बार असफल होती हूँ........कभी ''बाप रे...' कभी..''wowww'' कभी ''सुभानाल्लाह''.....सारे शब्द छोटे पड़ रहे हैं..:(<br /><br />क्या दारुण कविता है.....कितना विलक्षण शब्द सौन्दर्य....(कुछ शब्द सर पे से गए..मगर उनका अर्थ मैंने सही ही लगाया होगा...m sure ..)<br /><br />कुछ कुछ पंक्तियों पर तो बस सर हिला के रह गयी...'वाह' भी मुंह से नहीं निकली.......इतने सुंदर लगे मुझे...:)<br />जैसे..<br />'चीखते मिल प्रेत जैसे ध्वनित मारण- मंत्र !'<br />''ध्वनित मारण यंत्र''......क्या ग़ज़ब की सोच है....भूतों को उनकी चीखों से पहचाना जाता है....टीवी और सिनेमा में सुनी तमामतर चीखें ज़ेहन में गूँज गयीं.......यहाँ आपने ज़बरदस्त प्रयोग किया है........<br /><br />''गगन पथ से आ रहे शंकर !''<br />कितना उम्दा..कितना अनोखा...कितना सजीब वर्णन भगवान् शिव के आने का......अद्भुत पद लगा था ये वाला....<br /><br />''फिर भुजा से साध ,वह प्रिय देह काँधे पर सँवारे ,<br />हो उठे उन्मत्त प्रलयंकर !''<br /><br />मैंने एक मूर्ति देखी थी हरिद्वार में या वृन्दावन में याद नहीं ...........जिसमे एक मंदिर के बहार बहुत विशाल मूर्ति स्थापित है भगवन शिव की..जिनके हाथों में माता सती की देह है..और मूर्तिकार ने मानों आपकी कविता का विरह, दुःख और क्रोध मानों शंकर जी की आँखों में ही ढाल दिए हों...इस पद ने उस मूर्ति की याद ताज़ा कर दी.......<br /><br />प्रश्न केवल प्रश्न ,कोई नहीं उत्तर !<br />थकित ,भरमाये ठगे से शिव खड़े निस्संग !!<br />स्वप्न यह है ? या कि वह था ? <br />याद आता ही नहीं क्या हो गया !<br />चिह्न कोई भी नहीं <br />सपना कि सच था ?<br />मैं कहाँ था ? मैं कहाँ हूँ ?<br />नहीं कोई यहाँ !<br />किससे कहें ? जायें कहाँ ?<br /><br />मुआफ कीजियेगा .....यहाँ थोड़ा सा खटका लगा...कि भगवान् शिव भी एक साधारण मनुष्य की तरह ही विचलित हो इस तरह की स्थिति में आ गए......? जैसे किसी बहुत अपने की मृत्यु के ठीक एक दिन बाद की सुबह में अनुभव होता है......कि..नहीं बुरा सपना था शायद......यकीन ही नहीं होता...:(:(..!<br /><br />''अभ्यास वश अनयास ही <br />शिव हुये समाधि-विलीन !''<br /><br />मैं सोच ही नहीं पायी थी कि अंत कैसा होगा इस कविता का...बहुत अच्छा समापन है....<br /><br />शंकर जी के विरह के बारे में सुनती ही रही थी..मात्र एक या दो पंक्तियों में कहने वाले कह देते थे........आज पहली बार जीवन में एक पूरी कविता उनकी विरह दशा के बारे में पढ़ी.......यूँ भी भगवान शिव आराध्य से ज़्यादा एक मित्र रुपी अभिभावक के जैसे रहे हैं मेरे लिए...सच्ची कहूं...प्रतिभा जी......शायद पहली बार itna sara और itna अच्छा padha शंकर जी के लिए......abhibhoot हूँ..........aapke shabdon का aabhar !!Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-86523566932158684752011-01-30T10:47:25.289-08:002011-01-30T10:47:25.289-08:00waah!
मैंने ऐसे पहली बार पढ़ा है।मगर इससे एक फायद...waah! <br />मैंने ऐसे पहली बार पढ़ा है।मगर इससे एक फायदा हुआ कि आँखों के आगे चित्र खुद ब खुद बदल रहे थे........दिमाग चुपचाप बस पढ़ने का काम कर रहा था..:)<br /><br />खैर.....<br /><br />''कोई नाम नहीं होता ,जब मनुज जन्म लेता है .<br />पता नहीं क्या नाम धरेगा उसका यह संसार .<br />हर शिशु है संदेश ,विधाता भेज रहा है अविरल<br />कोई भाषा नहीं समझता सिर्फ समझता प्यार 1<br />द्वेष और रागों से ऊपर परमहंस सा आता,''<br /><br />बहुत ही मजबूत और सटीक पंक्तियाँ......बहु आयामी हो गया है ये वाला छंद ....१)इंसान की जन्म से कोई जाति नहीं होती.... २) हम मानव खुद ही अपने आप को वर्गीकृत करते हैं ...३)जन्म और मृत्यु के कुछ गूढ़ रहस्य विज्ञान से भी परे हैं अब तक.....जो किसी और सत्ता की तरफ इशारा करते हैं......जिन्हें आपने एक संदेश कहा...उसे मैंने इस रूप में भी लिया...४)वाह! परमहंस की उपमा बच्चे को.....सही है एकदम....सही ही कहा.....सच ही तो परमहंसी हो जातें हैं बच्चे.....बहुत प्यारी बात लगी ये वाली....याद रखूंगी....:)<br /><br /><br /><br />मनुज तुम्हारी तृष्णा तुमको चुप न बैठने देगी ,<br />और तुम्हारी मोहबुद्धि ही तुमको भटकाएगी .<br />उन्नति-सुख के स्वप्न तुम्हारे तुम्हें निगल जाएंगे ,<br />ये धरती चुपचाप शून्यमें तिरती रह जाएगी !<br /><br />सोलह आने सही फरमा रहीं हैं पंक्तियाँ.....हाल ही में जितनी प्राकृतिक आपदाएं भारतीय उपमहाद्वीप ने झेलीं हैं.....कहा जा रहा है (वैज्ञानिकों द्वारा..) ये चीन के प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा हैं....<br /><br />बालपन और वृद्धावस्था का encounter अच्छा था....सच कहूं तो मुझे लगता है प्रतिभा जी..और भी शब्द और मुद्दे दिए जा सकते थे इन दोनों किरदारों को......:( खैर.....मैंने ऐसा सोचा बस..और कुछ नहीं !!<br /><br />नया मनुज जन्मेगा ,मैले माटी के आँचल में ,<br />कमल खिलेंगे बार-बार कालों के सरिता जल में<br /><br /><br />:)<br /><br />अंत अच्छा था...सकारात्मक और ऊर्जा वाला..aur ek aur bahut achhi baat....ek bhi shabd googal par nahin dhoondhna pada..:):)<br /><br /><br />बहुत अलग से कविता के लिए आभार !!Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-41033997692091995452011-01-30T10:25:52.975-08:002011-01-30T10:25:52.975-08:00बहुत अच्छा संवाद है..श्रीकृष्ण और द्रौपदी का.........बहुत अच्छा संवाद है..श्रीकृष्ण और द्रौपदी का......उससे भी अच्छे से आपने कविता के प्रवाह को बनाए रखा है.....<br /><br />hhheheehee...पहली बार पढ़ी तो यही देख रही थी..कि काफिया अच्छा जमाया है...अब मुझे तो कई शब्दों के अर्थ ही नहीं पता थे...इसलिए यहाँ वहां ध्यान भटक रहा था...मगर फिर मन कड़ा करके सब्र से गूगल पर अर्थ पता किये....:)......<br /><br />''देवी कुन्ती की संतानों के पिता भिन्न पर उचित सभी !''<br />''तुमको न दोष देगा कोई, है यही सामयिक परम धर्म ,''<br /><br />श्रीकृष्ण जो न करें सो थोड़ा.....खैर...धर्म ही सर्वोपरि है...सो justified हैं पांडव और उनकी पांचाली...<br /><br />''तज राज-और रनिवास चला आऊँगा रण हो या अरण्य,<br />इस प्रीति डोर में बँधा हुआ बन कर तेरा अंतिम शरण्य !''<br /><br />...भावुक समापन..मगर इससे बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता था......न द्रौपदी के लिए न किसी अन्य स्त्री-पुरुष के लिए....<br /><br />आपकी हिंदी बहुत शुद्ध है.....आपसे बहुत kuch सीखने को मिल rahaa है...शुक्रिया ....:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-13037826403267549862010-12-12T13:05:50.073-08:002010-12-12T13:05:50.073-08:00bahut sundar.....
visit my blog...u will like itbahut sundar.....<br /><br />visit my blog...u will like itnilotpalhttps://www.blogger.com/profile/06557570996850127146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-89338399014939657632010-09-23T00:26:41.924-07:002010-09-23T00:26:41.924-07:00bahot achcha likhin hain.bahot achcha likhin hain.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.com