tag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post4413100465504487104..comments2023-09-30T06:13:07.529-07:00Comments on मनः राग: अंतिम शरण्यप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-41033997692091995452011-01-30T10:25:52.975-08:002011-01-30T10:25:52.975-08:00बहुत अच्छा संवाद है..श्रीकृष्ण और द्रौपदी का.........बहुत अच्छा संवाद है..श्रीकृष्ण और द्रौपदी का......उससे भी अच्छे से आपने कविता के प्रवाह को बनाए रखा है.....<br /><br />hhheheehee...पहली बार पढ़ी तो यही देख रही थी..कि काफिया अच्छा जमाया है...अब मुझे तो कई शब्दों के अर्थ ही नहीं पता थे...इसलिए यहाँ वहां ध्यान भटक रहा था...मगर फिर मन कड़ा करके सब्र से गूगल पर अर्थ पता किये....:)......<br /><br />''देवी कुन्ती की संतानों के पिता भिन्न पर उचित सभी !''<br />''तुमको न दोष देगा कोई, है यही सामयिक परम धर्म ,''<br /><br />श्रीकृष्ण जो न करें सो थोड़ा.....खैर...धर्म ही सर्वोपरि है...सो justified हैं पांडव और उनकी पांचाली...<br /><br />''तज राज-और रनिवास चला आऊँगा रण हो या अरण्य,<br />इस प्रीति डोर में बँधा हुआ बन कर तेरा अंतिम शरण्य !''<br /><br />...भावुक समापन..मगर इससे बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता था......न द्रौपदी के लिए न किसी अन्य स्त्री-पुरुष के लिए....<br /><br />आपकी हिंदी बहुत शुद्ध है.....आपसे बहुत kuch सीखने को मिल rahaa है...शुक्रिया ....:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.com