tag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post6158047215020802362..comments2023-09-30T06:13:07.529-07:00Comments on मनः राग: रति-विलापप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-74772287221558064122012-09-15T00:33:29.020-07:002012-09-15T00:33:29.020-07:00bahut bahut bahut utkrisht rachna hai, sunder sash...bahut bahut bahut utkrisht rachna hai, sunder sashakt shabdon ka sanyojan. meghdoot ki yaad dila di. Meghdoot me rati vilap bahut sankshipt roop me padha tha aaj mano uski maneh-sthiti se akshartah ru-b-ru ho gayi hun. bahut aabhari hun apki aur apki lekhni ki. <br /><br />ab lag raha hai khangaalna avashyambhaavi hai.:-)अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-20116877495332029992011-02-28T11:00:41.185-08:002011-02-28T11:00:41.185-08:00पहले ही चरण में इतना ज़्यादा सुदर वर्णन कर दिया आप...पहले ही चरण में इतना ज़्यादा सुदर वर्णन कर दिया आपने प्रकृति का...कि जाने कितने कितने मनोहारी दृश्य आखों के आगे घूम गए..... <br /><br />''एक पल दारुण दहन का<br />हरित तृण-वीरुध अँगारे लपट लिपटे,<br />गंध वासन्ती कसैला धूम.<br />माँस- मज्जा जलन की तीखी चिराँयध .<br />काम की त्रैलोक्य मोहन देह <br />रह गई बस एक मुट्ठी भस्म .''<br /><br />...वाह! जैसे सचमुच शब्दों संग बिजली सी कौंधी हो और कामदेव भक्क से भस्म हो गयें हों...<br /><br />तुष्ट हो शिव ,शव बना दो सृष्टि को,<br />हो कर अकेले चिर जियो .<br /><br />उलाहना का अंदाजा लगाया था...मगर इतनी मजबूत उलाहना का नहीं...एक दफे फिर शिव और शव को साथ रख कर पंक्ति की सुन्दरता बढ़ा दी आपने......आपकी ही वो वाली कविता याद आ गयी.....''वहां कोई शिव नहीं था सब शव थे...'' शायद 'दुर्गम्य ' थी...एकदम नाम याद नहीं...:(<br />:o कभी सोचा नहीं 'शव' शब्द इतने अच्छे से प्रयुक्त किया जा सकता है......?<br /><br />सुन्दरी ,चिर-यौवना ,सुकुमार <br />धूरि-धूसर ,मूर्छिता रति पड़ी भू-लुंठित ,<br />बिरछ से छिन्न लतिका सी हता .<br />सुधि न वस्त्रों की विभूषण खुले जाते.<br />चेतती किंचित कि दारुण रुदन <br />करुण प्रलाप भर-भऱ !<br /><br />बहुत जीवंत शब्द..अक्षर अक्षर आतुर है जैसे दृश्य के रेखांकन में...मुझे प्रथम पद बेहद पसंद आया था..मगर करुण रस मेरा पसंदीदा है...सो ये दृश्य बेहतरीन लगा....जैसे रति साक्षात मेरे आगे हों...<br /><br />-----------<br />कठिन तो थी रचना ३ बार पढ़के समझ आई...:(..क्यूंकि शब्दों के अर्थ नहीं पता थे प्रतिभा जी.....खैर शुक्रिया हो गूगल महाराज का...<br />ये कथा तो सुनी ही हुई थी...उससे ज़्यादा देखी हुई थी टीवी पर...परन्तु आपकी नज़रों से आपके शब्द चित्र के माध्यम से पुन: कथा दोहराना बहुत अच्छा अनुभव रहा.... .<br /><br />बहुत उम्दा सृजन...शायद ''शिव विरह'' से भी बहुत अच्छी लगी मुझे ये कविता......<br /><br />(प्रतिभा जी...भाषा की त्रुटी(यदि होती हो ..) और अपरिपक्व टिप्पणियों के लिए सदा क्षमाप्रार्थी रहूंगी.....मगर बिना कहे रहा भी तो नहीं जाता..:(...)<br /><br />चलिए शुभ रात्रि !!Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-65694301337935172792010-04-04T02:27:50.688-07:002010-04-04T02:27:50.688-07:00हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ...हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई<br />कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करेंअजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-77047677121373746472010-03-30T06:55:31.317-07:002010-03-30T06:55:31.317-07:00कुछ समझ में आने लगता है कि तभी .... कुल मिलाकर रति...कुछ समझ में आने लगता है कि तभी .... कुल मिलाकर रति विलाप को पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-21456032455040927922010-03-29T23:37:36.956-07:002010-03-29T23:37:36.956-07:00सुन्दर रचना।सुन्दर रचना।IMAGE PHOTOGRAPHYhttps://www.blogger.com/profile/07648170539684419518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2681253561646752671.post-64675474204661983892010-03-29T10:36:55.837-07:002010-03-29T10:36:55.837-07:00"भस्म कर दो मुझे भी,
दारुण व्यथा का अन्त कर द..."भस्म कर दो मुझे भी,<br />दारुण व्यथा का अन्त कर दो!"<br />अभी मेरी समझ में कुछ नहीं आया लेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि फिर से आऊंगा और समझाने का प्रयास करूँगा.Anonymousnoreply@blogger.com